भगवान शिव क्या कभी नशा करते थे ? हर हर महादेव मित्रो इस पोस्ट में जो तस्वीर आपको दिख रही है उसमें भगवान शिव को नशा करता हुआ दिखाया गया है लेकिन जब भी मैं भगवान शिव की यह तस्वीर देखता हूं तो मुझे बहुत दुख होता है। दिल रोता है। अपने खुद के नशे की लत के लिए हम और कितना महादेव जी को बदनाम करेंगे
Post Credit – Dhrumil Kayasth
क्या भगवान शिव नशा करते थे ?
शिव शब्द का अर्थ है शुभ। शंकर का अर्थ है कल्याण करने वाले। निश्चित रूप से उन्हें प्रसन्न करने के लिए मनुष्य को उनके अनुरूप ही बनना पड़ेगा। शिवो भूत्वा शिवं यजेत् यानी शिव बनकर ही उनकी पूजा करें
भगवान शिव की कृपा से मैंने कुछ समय पहले शिव पुराण पढ़ा था ओर कहीं भी यह वर्णन नहीं आया कि भगवान शिव ने गांजा या चरस फूंकी हो विपरीत इसके महादेव जी ने संसार की रक्षा के लिए हलाहल विष पिया था
लेकिन इसके बारे में कोई बात तक भी नहीं करता , परंतु हां 80% गंजेडी-चरसी जब गांजा चरस फूंकते है तो वे यही कहते हैं कि फिर क्या हुआ यह तो भोले का प्रसाद है। इन जैसे लोगों ने ना तो कभी भगवान शिव को जाना होता है ना कभी पढ़ा होता है ओर ना कभी जानने की कोशिश करते हैं परन्तु हां फूंकने के समय इनको शिव जी की याद आ जाती है।
ऐसे लोगों को मैं कहना चाहूंगा कि ज़रा सोचो जो शिव ब्रह्मांड पिता है ब्रह्मांड रचियता है ब्रह्मांड आत्मा है ,जो कण कण में समाया हुआ है , जो निराकार होके भी साकार है , जो निर्गुण होके भी सगुण है , जिनके आंखे मूंदते ही यह ब्रह्मांड अंधकारमय हो जाता है , क्या ऐसे शिव को किसी भी तरह के नशे की जरूरत है ?? वे भगवान है ना कि हम जैसे तुच्छ इंसान । उनको किसी सहारे की जरूरत नहीं है ,अपने आप में ही संपूर्ण हैं शिव।
शिव को भांग क्यों चढ़ाते हैं
हां उन्हें भांग के पत्ते अवश्य चढ़ते हैं क्योंकि आयुर्वेद में भांग को एक बहुत ही उपयोगी औषधि माना जाता है और इसे अब पूरा विश्व भी स्वीकार कर रहा है। शिव पुराण के अनुसार समुद्र मंथन सावन के महीने में हुआ था तो जब मंथन में से अमृत निकला था तो उस अमृत को पाने के लिए तो देवता दैत्यों में भगदड़ मच गई थी परंतु ठीक जब अमृत के बाद पृथ्वी को नष्ट कर देने वाला हलाहल विष निकला तो कोई आगे ना आया,तब भगवान शिव आए और उन्होंने उस भयानक विष को अपने कंठ में धारण किया, जिसके कारण वे नीलकंठ व देवों के देव महादेव कहलाए।
भगवान शिव के सहस्त्रो नाम में एक नाम है कर्पूरगौरम , जिसका अर्थ है पूर्णतः सफेद । लेकिन उस हलाहल विष के सेवन के बाद उनका शरीर नीला पड़ना शुरू हो गया था भगवान शिव का शरीर तपने लगा लेकिन शिव फिर भी पूर्णतः शांत थे
लेकिन देवताओं ने सेवा भावना से भगवान शिव की तपण शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया और विष के प्रभाव कम करने के लिए विजया ( भांग का पौधा )को दूध में मिला कर भगवान शिव को औषधि रूप में पिलाया।
बस यही एक प्रमाण है भगवान शिव के भांग सेवन का लेकिन हमने उन्हें चरस गांजा फूंकने वाला एक साधारण बना दिया अब आप ही बताइए कि क्या हम सही न्याय कर रहे हैं उस ब्रह्मांड पिता की छवि के साथ ??
भगवान् शिव का तीसरा नेत्र विवेक का प्रतीक है, जिसके खुलते ही कामदेव नष्ट हुआ था अर्थात् विवेक से कामनाओं को विनष्ट करके ही शांति प्राप्त की जा सकती है
भोलेनाथ नहीं सिखाते नशा
हमरे जान सदा शिव जोगी।
अज अनवद्य अकाम अभोगी।
अर्थात जैसा विराट पवित्र व्यक्तित्व है, उसने पता नहीं नशा कब किया होगा। भांग, धतूरा, चिलम, गांजा जैसे घातक नशे करना मानवता पर कलंक है। नशा करना एक आतम्हत्या की तरह है , शिव शंकर ने कभी नशे का समर्थन नहीं किया था ।
कुछ लोग शिव के नाम पर नशा करते हैं, उन्हें भगवान की वास्तविकता पता नहीं है । अगर शिव की सच्ची भक्ति करनी है तो आप लोगों को नशे से मुक्त करो और खुद भी नशे का सेवन बंद करके इस समाज को सुंदर बनाओ
अगर आपको गांजा ही फूंकना है तो शौक से फूंको लेकिन भगवान शिव को बदनाम मत करो और हां कुछ लोग तो दारू पीकर भी यही बोलते है कि ये तो भोले की कृपा है वो भी तो नशा करते थे ऐसे लोगों को क्या कहा जाए अपने नशे में भगवान को बदनाम करते है ।
यदि आप भगवान शिव के सच्चे भक्त हैं तो इस तस्वीर को शेयर करना बंद करें और जो भी आपको भेजे या स्टेटस लगाता है उन सबको मना करें कि भगवान को बदनाम मत करो भगवान ने विष पिया था ना कि चिलम , दारू, चरस , अफीम ये सब ।
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